/anm-hindi/media/media_files/2025/06/27/aata-2706-2025-06-27-22-49-56.jpg)
Sample of bad flour passed the test
राहुल तिवारी, एएनएम न्यूज़ : सालानपुर प्रखंड में राशन में लम्बे समय से मिल रहे गंदे आटे की शिकायत एवं प्रदर्शन के बाद गंदे आटे का सप्लाई करने वाले अंबिका फ्लोर मिल को बंद कर दिया गया है।
वही सरकारी जाँच में दो बार गंदे आटे का सैम्पल सही आने के बाद भी मिल को बंद किये जाने से कई सवाल उठ रहा है। बता दे कि मामले में कई महिने पहले प्रखंड के बारभुई के ग्रामीणों ने ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराया था, जिसके बाद आटा की जांच कर ठीक होने की मुहर लगा दिया गया था।
जांच में आटे को ठीक बताने से गुस्साए ग्रामीणों ने आटे से सैम्पल के साथ बीते 9 जून को प्रखंड बीडीओ कार्यालय का घेरावा कर प्रदर्शन किया एवं प्रखंड बीडीओ एवं खाद्य विभाग के अधिकारी को उक्त आटे से बनी रोटी खा कर दिखाने की बात कही। जिसके बाद बीडीओ के आदेश पर उपभोक्ताओं से बीते 12 जून को आटे का सैम्पल पुनः लिया गया और जांच के लिए भेजा गया लेकिन उक्त सैम्पल में भी आटा को ठीक होने का मुहर लगा। परन्तु इसके बाउजूद उक्त आटा को सप्लाई देने वाली अंबिका मिल को गुरुवार बंद कर दिया गया। जिससे स्थानीय लोगों द्वारा सरकारी जांच पर सवाल उठाया जा रहा है। स्थानीय लोगो का सवाल है कि अगर आटा वाकई अच्छा था, तो मिल बंद क्यों हुई? और अगर जनता की शिकायतें सही हैं, तो सरकारी प्रयोगशाला की रिपोर्ट पर कौन भरोसा करेगा? इस घटना ने एक रहस्यमयी पहेली को जन्म दे दिया है, जिसका जवाब किसी को नहीं पता। स्थानीय लोगों की साफ शिकायत है कि इस आटे से रोटी तो दूर, इसे खाया भी नहीं जा सकता।
हालांकि जांच का पता नही अपर इस बीच उक्त आटे वाली अंबिका आटा मिल पूरी तरह बंद हो गई है। प्रशासन से पता चला कि जिला खाद्य विभाग ने मिल को कारण बताओ नोटिस भेजा था। लेकिन मिल अधिकारियों द्वारा दिए गए जवाब से विभाग संतुष्ट नहीं था। नतीजा? मिल को बंद कर दिया गया। सलानपुर बीडीओ देबांजन विश्वास ने कहा कि खाद्य विभाग ने उचित कदम उठाए हैं। खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारी बिनेश्वर रॉय ने भी पुष्टि की कि मिल बन्द कर दी गई है। हालांकि, अब राशन की दुकानों में आटा कहां से आएगा? यह निर्णय उच्च अधिकारियों पर है।
वही नाम न बताने की शर्त पर एक प्रभावशाली नेता ने कहा, 'आटे की गुणवत्ता इतनी खराब थी कि ग्राहकों के गुस्से का सबसे पहले शिकार हमे होना पड़ता था।' कई डीलर इस मिल से आटा लेना ही नहीं चाहते थे। गौरतलब है कि आटा इतना खराब होने के बाद भी इतने लंबे समय तक यह आटा गरीबों को क्यों दिया गया? जनता की शिकायतों को महत्व क्यों नहीं मिली? यह घटना एक के बाद एक सवाल खड़े करती दिख रही है। सरकारी प्रयोगशाला में आटा बार-बार 'पास' होता रहा, फिर भी लोगों की बात नहीं मानी गई। हालांकि, अब मिल बंद हो चुकी है। प्रयोगशाला की रिपोर्ट गलत थी? इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता के बारे में कोई क्यों नहीं बोल रहा है? और अगर आटा खराब था, तो इतने लंबे समय तक आम आदमी के स्वास्थ्य से क्यों खिलवाड़ किया गया? क्या यह 'पास' आटा वाकई खाने लायक था, या फिर सरकारी 'सर्टिफिकेट' को जनता के गुस्से के आगे झुकना पड़ा? अब सबकी निगाहें राशन की दुकानों में नए आटे पर टिकी हैं।
वही पूरे मामले से यह भी साफ हो गया कि गरीबों का शोषण किसी ना किसी तरह चलता ही रहेगा। चाहे वो माध्यम बदल जाये पर गरीब को जीवन के लिये संघर्ष करना पड़ेगा।