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Fear of silicosis due to pollution
राहुल तिवारी, एएनएम न्यूज़ : राज्य के ग्रामीण इलाकों में पत्थर क्रेशरों एवं बड़े-बड़े कारखनो के कारण फेल रहे प्रदूषण से धीरे-धीरे लोगो का जीवन खतरे में पड़ रहा है। प्रदूषण से गम्भीर बीमारियों से घिर रहे श्रमिकों की जीवन से खेलवाड़ किया जा रहा है।
सालानपुर प्रखंड में चल रहे कई अवैध और वैध क्रेशर मुख्यता श्रमिकों के जीवन से खेल रहे और मौत में मुह में झोंक रहे हैं, यही नही नियमों को तक पर रख क्रेशरों को संचालित प्रशासन के सामने किया जा रहा है और श्रमिकों के बिषय में सोचने वाला कोई नही है।
बर्तमान में सालानपुर प्रखंड में सिलिकोसिस के कई मामले और मरीजों की पुष्टि ने पहले ही सब की नींद उड़ा रखी और स्वास्थ्य विभाग द्वारा सिलिकोसिस जाँच शिविर चलाया जा रहा है लेकिन क्रेशरों के खिलाफ कोई कार्यवाही नही की जा रही है जो कि प्रशासन एवं पर्यावरण विभाग समेत श्रमिकों के हितों का राक्षक श्रमिक विभाग की उपस्थिति सवालों के घेरे में है।
रोजगार एवं आया के लालच में कई परिवार मौत की भेंट चढ़ रहे है। ऐसा ही एक मामला सामने आ रहा है जहां प्रखंड के मधाईचक स्थित एक पत्थर क्रेसर में बीते 10 सालों से कार्य कर रहे के फुलबेरिया निवासी सोरेन बाउरी नामक 45 वर्षीय एक श्रमिक सांस लेने की बीमारी से पीड़ित है। और टीवी की भी पुष्टि हो चुकी है हालांकि अबतक सिलिकोसिस की जाँच नही हुई है जिससे वह सिलिकोसिस से पीड़ित है या नही यह पहचान हो पाए। श्रमिक की बर्तमान स्थिति को देख साफ जाहिर होता है कि इलाके के क्रेशरों के सिलिका युक्त धूल एक और मौत का कारण बन गया है।
परिजनों के अनुसार पहले खांसी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ हुई और जो अब गम्भीर हो गया है। मरीज को पिठाकेयारी स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती कराया गया है जहां इलाज एवं जाँच की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन ग्रामीणों को डर है कि उसे सोरेन बाउरी सिलिकोसिस से ग्रस्त हो सकते है ।
वही मामले में प्रखंड स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि मरीज को बीते 6 माह से टीबी थी जिसके बाद दवाई से ठीक भी हो गई थी। टीबी के बाद खाने में खास कर पोष्टिक आहार लेना पड़ता है, परन्तु कोई लापरवाही हुई है जिससे व्यक्ति फिर बीमार पड़ा है इलाज चल रही है। हम मरीज को जिला अस्पताल भेज रहे है जहां सिलकोसिश बोर्ड द्वारा भी जांच की जायेगी।
दूसरी तरफ ग्रामीणों का डर और डॉक्टरों के बयान - एक गंभीर सवाल खड़ा करता है? क्या सच्चाई छिपाने की कोसीस की जा रही है? वही इन प्रदूषण वाले क्रेशरों पर अंकुश कब लगेगा और जाँच कब होगी ? क्या श्रमिकों की मौत की कोई किमत नही है। ये क्रेशर उद्योग अक्सर न्यूनतम निगरानी के साथ संचालित होते हैं, जो हवा में जहरीले शिलिका युक्त कण छोड़ते हैं और आस-पास के गांवों को धूल की चादर में ढक देते हैं। जो लोग बिना सुरक्षा उपकरण या स्वास्थ्य सुरक्षा के काम करते हैं, जैसे कि श्रमिक सबसे पहले पीड़ित होते हैं।
हालांकि कई सिलिकोसिस मरोजो की पुष्टि के बाद सालानपुर में स्थानीय प्रशासन ने जांच शुरू की है, लेकिन समस्या की गंभीरता के मुकाबले कार्रवाई की गति धीमी है। वही सोरेन बाउरी का मामला सामने आते ही बात को दबाने में जुटा क्रेशर मालिक बीमार श्रमिक को इलाज के लिए चेन्नई भेजना की पहल बदले में किसी को नही बताने की कही बात।