मूर्ति नहीं, बल्कि पत्थर के रूप में होती है मां काली की पूजा

पश्चिम बंगाल के जामुड़िया विधानसभा अंतर्गत श्यामला अंचल के फरफरी गांव में एक अनोखी परंपरा चलती आ रही है, जहां मां काली की पूजा मूर्ति के बजाय पत्थर के रूप में की जाती है।

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Jagganath Mondal
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jamuria kali puja

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टोनी आलम, एएनएम न्यूज़ : पश्चिम बंगाल के जामुड़िया विधानसभा अंतर्गत श्यामला अंचल के फरफरी गांव में एक अनोखी परंपरा चलती आ रही है, जहां मां काली की पूजा मूर्ति के बजाय पत्थर के रूप में की जाती है। इसे पाषाण काली मंदिर कहा जाता है, जो लगभग डेढ़ सौ वर्षों से ग्रामीणों की आस्था का केंद्र है।

इस मंदिर में कोई छत या शेड नहीं है, बल्कि मां काली की पूजा खुले आकाश के नीचे होती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मां का आदेश है, इसलिए यहां युगों से इस परंपरा का पालन हो रहा है।

हर साल अमावस्या की रात विशेष अनुष्ठान होते हैं, जिसमें स्थानीय तालाब से पानी लाया जाता है, बलि दी जाती है और करीब चार घंटे तक पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा के अंत में ही विसर्जन की परंपरा निभाई जाती है।

यह गांव आर्थिक रूप से ज्यादा समृद्ध नहीं है, लेकिन त्योहारों के दौरान यहां की भक्ति और उत्साह देखते ही बनता है। फरफरी गांव की यह पाषाण काली पूजा इस बात का प्रमाण है कि सच्ची श्रद्धा के लिए भव्य मूर्ति या मंदिर का होना जरूरी नहीं।