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Why do the followers of Jainism fast before death
स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज़: हर धर्म के लोगों में जन्म से लेकर मृत्यु तक अलग-अलग प्रथाएं होती हैं। जैन धर्म में एक प्रथा होती है, जहां पर मृत्यु के बाद मृत्यु को महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। जैन धर्म में लोग शांत मन से मौत का स्वागत करते हुए अन्न और जल का त्याग कर उपवास करते हैं। इस प्रथा को वहां संथारा कहा जाता है। चलिए इसके बारे में थोड़ा और विस्तार से जानें।
जैन धर्म की मानें तो जब किसी शख्स या फिर जैन मुनी को लगता है कि उनकी मौत करीब है तो वो खुद को एक कमरे में बंद करके अन्न-जल का त्याग कर देते हैं। जैन धर्म ग्रंथों में संथारा प्रथा को संलेखना, समाधिमरण, संन्यासमरण आदि के तौर पर भी दर्शाया गया है। कोई भी शख्स ऐसे ही संथारा ग्रहण नहीं कर सकता है। इसके लिए जैन धर्म के धर्मगुरु की आज्ञा का पालन करना होता है। बूढ़े हो चुके लोग या फिर अगर कोई लाइलाज बीमारी से जूझ रहा है तो ऐसी स्थिति में संथारा ग्रहण किया जाता है। संथारा लेने के बाज लोग अन्न-जल का त्याग कर देते हैं। इस दौरान पर सारी मोह-माया छोड़कर सिर्फ ईश्वर को याद करते हैं।
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