महाशिवरात्रि विशेष : पांडवेश्वर में इन मंदिरों का है पांडवों से नाता, ऐसी हैं यहां की मान्यताएं

माना जाता है कि इन शिव मंदिरों की स्थापना महाभारत काल के दौरान पंचपांडवों द्वारा की गई थी। द्वापर और त्रेता युग के कुछ शिव मंदिर आज भी भारत में मौजूद हैं, जिनमें से अधिकांश पांडवों से जुड़े हैं।

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Ankita Kumari Jaiswara
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 PANDESHWAR TEMPLE

टोनी आलम, एएनएम न्यूज़ : हमारा देश प्राचीन काल से ही सभ्यता से समृद्ध रहा है। प्राचीन भारत कला, साहित्य के साथ-साथ वास्तुकला के लिए भी बहुत प्रसिद्ध था। इसके कई निशान हमें प्राचीन मंदिरों और साहित्य से मिलते हैं। आज हम भारत के कुछ सबसे प्राचीन शिव मंदिरों के बारे में चर्चा करेंगे। माना जाता है कि इन शिव मंदिरों की स्थापना महाभारत काल के दौरान पंचपांडवों द्वारा की गई थी। द्वापर और त्रेता युग के कुछ शिव मंदिर आज भी भारत में मौजूद हैं, जिनमें से अधिकांश पांडवों से जुड़े हैं। अपने 12 वर्ष के वनवास के दौरान पांडवों ने कई शिवलिंगों की स्थापना की, जो आज भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। पांडवेश्वर में पंचपांडव और माता कुंती द्वारा छह शिव लिंगों की स्थापना भी एक 'सत्य' है। इस लोककथा की शुरुआत कब हुई, इसका पता आज तक नहीं मिलता। लेकिन पांडवेश्वर से सटे इलाके के नामकरण को देखकर लगभग हर कोई यही सोचता है कि अज्ञातवास में पांडव यहीं थे। 

उदाहरण के लिए, पांडवेश्वर क्षेत्र के बगल में बीरभूम जिले में भीमगढ़, पंचरा, कृष्णापुर, राजनगर बक्रेश्वर हैं। अजय नदी के दूसरी ओर केंदा श्यामल्या, 36 घंटा वगैरह है। ऐसे दो स्थान हैं पांडवेश्वर में पंचपांडव मंदिर और भुंडी फोरफ़ारी क्षेत्र में उत्तरेश्वर शिव मंदिर, जिनके बारे में स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि वे पंचपांडव के अज्ञातवास से संबंधित हैं।

पंचपांडव मंदिर के पुजारी अजीत तिवारी, बिमान रॉय और भूरी गांव के जगतपति रॉय ने कहा कि उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है कि पंचपांडव एक वर्ष के लिए पांडवत्सरा में आए थे और एक वर्ष तक अज्ञात रहे। इस दौरान पंचपांडव सिंहवाहिनी घाट पर आते थे और पूजा करते थे। पूजा के समय, वे पास के सती बांध से कमल के फूल लाते थे, वे उस सुरंग के माध्यम से पांडवस्तरा वापस जाते थे। आजकल, सिंहवाहिनी घाट के अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। यहां के राजा विराट के पुत्र उत्तर के नाम के अनुसार इस मंदिर का नाम उत्तरेश्वर शिव मंदिर रखा गया है। इस शिव मंदिर में पूजा के समय चमत्कारिक रूप से कदम के पेड़ पर केवल दो फूल खिलते हैं, उन्हीं फूलों से उत्तरेश्वर शिव मंदिर की पूजा की जाती है। इस उत्तरेश्वर शिव मंदिर के मुख्य पुजारी अम्यो अधिकारी ने कहा कि उनका परिवार सदियों से इस मंदिर में पूजा करता आ रहा है। उन्हें अपने पूर्वजों से पता चला कि पंचपांडव इस शिव मंदिर में पूजा करते थे। उन्होंने यह भी कहा कि यहां एक कदम का पेड़ है। मंदिर से सौ मीटर की दूरी पर स्थित इस पेड़ पर कोई फुल नहीं खिलता लेकिन पूजा के दिन, भक्त सुबह से उस पेड़ के नीचे पूजा करते हैं। सुबह में इस कदम के पेड़ पर केवल दो फूल पाए जाते हैं। पौराणिक काल के कई सबुत अभी भी वहीं हैं। यदि सरकार इस क्षेत्र की उचित देखभाल करे तो मंदिर के आसपास का क्षेत्र पर्यटन केंद्र बन सकता है। 

जामुड़िया के बिरकुल्टी गांव के राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक स्वराज दत्ता ने कहा कि उन्होंने भी अपने पूर्वजों से पंचपांडव की कहानी सुनी है। लेकिन पुराण कहता है, यह बंगाल 'पांडव बर्जित' है। यानी पांडवों ने कभी यहां कदम नहीं रखा। ये तो इतिहासकार ही बता सकते हैं। लेकिन इलाके के लोगों का मानना ​​है कि पंचपांडव इस इलाके में आये थे।

पौराणिक कथा के अनुसार क्या है कहानी 

पांडवेश्वर पंचपांडव मंदिर के पुजारी अजीत तिवारी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार अज्ञातवास के दौरान एक बार पंच भाइयों ने अपनी मां कुंती के साथ अजय नदी के तट पर शरण ली थी। साथ ही एक-एक शिवलिंग की स्थापना कर पूजा-अर्चना की। अजय के बगल में अब इसे पांडव मुनि के आश्रम के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा कि शिव मंदिर के पीछे की इस कहानी के कारण ही इस क्षेत्र को पांडवेश्वर के नाम से जाना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि अजय के उस पार हर हफ्ते एक राक्षस आता था। बदले में प्रत्येक परिवार को एक सदस्य को भोजन के रूप में उसे सौंपना पड़ता था। कुंती के कहे अनुसार भीम ने राक्षस का वध कर दिया। तभी से उस क्षेत्र को भीमगरा के नाम से जाना जाता है। यह अब बीरभूम जिले के अंतर्गत आता है। लेकिन ये सब दंतकथाएं कब से शुरू हुईं, इसको लेकर इलाके के बुजुर्ग असमंजस में हैं। ऐसा सुना जाता है कि अठारहवीं सदी में यहीं पर घनश्याम नाम के एक संत को सिद्धि प्राप्त हुई थी। तभी से शिव मंदिरों की प्रसिद्धि फैल गई। इतिहास जो भी हो, इसमें कोई संदेह नहीं है कि पश्चिम बर्दवान जिले और अन्य जिलों के लोग शिवरात्रि के त्योहार का आनंद लेते हैं।