टोनी आलम, एएनएम न्यूज़: तंत्र के अनुसार 3 शताब्दियों से भी अधिक समय से बामा काली की पूजा की जाती रही है। पूजा के दौरान श्यामा संगीत बजाया जाता है ताकि कोई भी मंत्र न सुन सके। जमुरिया थाना क्षेत्र के चुरूलिया के भट्टाचार्य परिवार की बामा काली पूजा सदियों से इसी परंपरा का पालन करते हुए की जाती रही है।
परिवार के सदस्य और पुजारी अशोक भट्टाचार्य ने बताया कि इस पूजा की शुरुआत तांत्रिक भक्त लक्ष्मीकांत भट्टाचार्य ने की थी। इस पूजा की विशेषता पहले पटल पूजा है, फिर महाशंख की माला की पूजा और कपाल के पत्तों का पूजा की जाती है। जिसके बाद इसे मां काली मंदिर में स्थापित किया जाता है। फिर चक्रानुष्ठान किया जाता है। उसके बाद तंत्र के अनुसार बामा काली की पूजा की जाती है। इस संदर्भ में इस परिवार के एक सदस्य ने कहा कि यह पूजा करीब ढाई सौ साल पुरानी है। यहां बामा पूजा की जाती है। बामा पूजा मतलब मां काली का बांया पैर आगे रखा जाता है और मां तारा की पूजा के दौरान मां के मंत्रोच्चारण को श्यामा संगीत से छुपा दिया जाता है। वहीं पुरोहित अशोक भट्टाचार्य ने कहा कि यहां पूजा में किसी और व्यक्ति की जरुरत नहीं होती। वह खुद ही पूजा करते हैं। अपने पूर्वजों से जो शिक्षा उनको मिली है उसी से वह मां की पूजा करतें हैं।