प्रकृति की उपासना का महापर्व छठ पूजा के बारे में

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प्रकृति की उपासना का महापर्व छठ पूजा के बारे में

स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज: छठ पर्व प्रकृति की उपासना और संतुलन का का त्योहार है। धर्मग्रंथों में सूर्य की शक्तियां उनकी पत्नियां मानी जाती हैं, ऊषा व प्रत्यूषा. प्रातः काल सूर्य की पहली किरण ऊषा व सायंकाल सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य दिया जाता है। इस तरह से दोनों के बीच संतुलन स्थापित किया जाता है। सूर्य उपासना की परंपरा ऋग्वैदिक काल से लेकर विष्णु पुराण, भागवत पुराण, इत्यादि से होते हुए मध्यकाल तक आती है। बाद में सूर्य की उपासना के रूप में छठ पर्व की प्रतिष्ठा हो गई। उपनिषद् में इसका उल्लेख है। देवताओं में सूर्य को अग्रणी स्थल पर रखा गया है। ग्रह नक्षत्रों में भी सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है। ​
साफ सफाई और पवित्रता को इस पर्व का विशेष आधार माना जाता है। यह स्वास्थ्य, मानसिक व शारीरिक दोनों ही दृष्टि से बहुत आवश्यक है। यह पर्व हमें पवित्र तो करता ही है, हमें पारिवारिक और सामाजिक एकत्रीकरण का भी संदेश देता है और उन अपनों से मिलाने का कार्य करता जिनसे लंबे समय से मिलना नहीं हो पाता है। इसीलिए यह लोक परम्परा भी बन गई कि वर्ष में एक बार होने वाले इस पर्व को पूरा परिवार मिल कर मनाता है। यह पर्व हमें संतुलन व पर्यावरण के प्रति जागरूकता प्रदान करने के साथ ही रास्तों का प्रबंधन, जल प्रबंधन और ऊर्जा का प्रबंधन भी सिखाता है।