स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज: पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नवरात्र पर्व की शुरुआत भगवान श्रीराम ने की थी। उन्होंने रावण से युद्ध में जीतने के लिए चंडी देवी की उपासना की थी। मां को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने 108 दुर्लभ नीलकमल रखे थे। वहीं रावण ने भी अमरत्व प्राप्ति की कामना से चंडी पाठ शरू किया था। रावण श्रीराम की पूजा सफल नहीं होने देना चाहता था, इसलिए उसने एक नीलकमल का पुष्प गायब कर दिया। जब श्रीराम को इस बात का पता चला तब उन्होंने देवी मां को प्रसन्न करने के लिए एक नीलकमल के स्थान पर अपने कमल नयन देने का निर्णय किया। श्रीराम की इस भक्ति से मां दुर्गा बहुत प्रसन्न हुईं और उन्हें विजयत्व का आशीर्वाद दिया।
जबकि रावण की पूजा में हनुमान जी विघ्न डालने के लिए पहुंच गए। उन्होंने वहां पढ़े जाने वाले दुर्गा श्लोक में एक शब्द का गलत उच्चारण करवा दिया। उन्होंने सबके मुख से दुख हरिणी के स्थान पर करिणी शब्द का उच्चारण कराया। करिणी शब्द का अर्थ होता है पीड़ा देने वाली। देवी मां के ऐसे श्लोक उच्चारण से देवी दुर्गा नाराज हो गईं और उन्होंने रावण को पराजय का श्राप दिया। तभी युद्ध में रावण की हार हुई। रावण पर श्री राम की विजय एवं मां चंडी देवी के वरदान की महिमा के कारण नवरात्रि का व्रत रखते हैं।