रथ यात्रा की कहानी

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रथ यात्रा की कहानी

स्टाफ रिपोर्टार एएनएम न्यूज़ : रथ यात्रा के पीछे एक पुरानी कहानी प्रचिलित है की ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ था। उस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रत्नसिंहासन से उतार कर भगवान जगन्नाथ के मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है।



 

फिर 108 कलशों से उनका शाही स्नान होता है जिससे भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें बुखार आ जाता है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ को एक विशेष स्थान में रखा जाता है जिसे ओसर घर कहते हैं।



15 दिन बाद भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होकर घर से निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। इसे नवयौवन नेत्र उत्सव भी कहते हैं. इसके बाद आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।



पुरी स्थित वर्तमान मंदिर 800 वर्षों से भी पुराना है जिसे चार पवित्र धामों में से एक माना गया है। कहा जाता है कि जिन भक्तों को रथ यात्रा का रथ खींचने का सौभाग्य मिलता है वो बहुत भाग्यवान माने जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।