Ajab Gajab: इस इक्कीसवीं सदी में भी प्राचीन तरीके से जलती है अग्नि

आश्रम में दीपक जलाने के लिए न तो माचिस का इस्तेमाल होता है और न ही लाइटर का। इस इक्कीसवीं सदी में भी ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहां पवित्र दीपक को प्राचीन तरीके से प्राकृतिक तरीके से बनाई गई आग से ही जलाया जाता है।

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Kalyani Mandal
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स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज़: आश्रम में दीपक जलाने के लिए न तो माचिस का इस्तेमाल होता है और न ही लाइटर का। इस इक्कीसवीं सदी में भी ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहां पवित्र दीपक को प्राचीन तरीके से प्राकृतिक तरीके से बनाई गई आग से ही जलाया जाता है। ऐसी ही एक जगह ओडिशा के खोरधा जिले में है। 

रिपोर्ट के मुताबिक आश्रम के मुख्य संत ने पहले बाएं हाथ में एक चकमक पत्थर और लकड़ी का एक छोटा सा टुकड़ा पकड़ा और फिर पत्थर पर धातु से प्रहार किया जिससे चिंगारी निकली। फिर कुछ प्रयासों के बाद वह आग जलाने में कामयाब रहा जिसने लकड़ी के टुकड़े को अपनी चपेट में ले लिया। फिर लकड़ी पर पुआल का गुच्छा रखकर संयोजन को घुमाया गया। इसके बाद कुछ ही देर में आग उत्पन्न हो गई जिसका उपयोग पास में रखे घी के दीपक को जलाने के लिए किया गया। इस दुर्लभ कृत्य के लिए ‘अलेख निरंजन’ के मंत्र के बीच, संत ने दीपक लिया और उसे उसके निर्धारित स्थान पर रख दिया।